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Pitru Paksha (Shradh) 2025: महत्व, तिथियाँ, और नियम

Pitru Paksha (Shradh) 2025: महत्व, तिथियाँ, और नियम
  • 05 Sep 2025
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भारत में हर त्योहार का एक गहरा संदेश और परंपरा छिपी होती है। इन्हीं में से एक है पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। यह समय खासतौर पर हमारे पूर्वजों (पितरों) को याद करने, उनके लिए तर्पण और श्राद्ध करने का होता है। माना जाता है कि इस अवधि में पितरों की आत्माएँ पृथ्वी पर आती हैं और अपने वंशजों से आशीर्वाद देती हैं।  
 

पितृ पक्ष क्या होता है?

पितृ पक्ष, हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन अमावस्या तक चलता है। इसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं। यह समय हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का है। इस दौरान लोग अपने पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान, दान और ब्राह्मण भोज कराते हैं।  
 

पितृ पक्ष का महत्व

  • पितरों का आशीर्वाद परिवार की उन्नति, सुख-शांति और समृद्धि के लिए आवश्यक माना जाता है।
  • ऐसा माना जाता है कि पितरों की आत्मा तृप्त होकर वंशजों को आशीर्वाद देती है और उनकी परेशानियाँ दूर करती है।
  • श्राद्ध और तर्पण करने से पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • ज्योतिषीय दृष्टि से भी यह समय महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे पितरों के कर्म-ऋण से मुक्ति पाने का अवसर माना जाता है।  
     

पितृ पक्ष 2025 की तिथियाँ (कब है पितृ पक्ष?)

हिन्दू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष 2025 की शुरुआत 7 सितंबर 2025 रविवार (पूर्णिमा के बाद की प्रतिपदा से) से होगी और समाप्ति 21 सितंबर 2025 (रविवार) को होगी। इसी दिन से लोग अपने पितरों को याद कर विधिवत श्राद्ध करते हैं।  
इस बीच हर दिन का अपना महत्व है, जिसे तिथि अनुसार श्राद्ध किया जाता है।  

यह भी पढ़ें: श्राद्ध के संस्कार  
 

पौराणिक कथाएँ और मान्यता

पितृ पक्ष से जुड़ी कई कथाएँ प्रचलित हैं। उनमें से एक कथा महाभारत के पात्र कर्ण से जुड़ी है। कहा जाता है की कर्ण जब स्वर्ग पहुँचे तो उन्हें स्वर्ण और आभूषण मिले, लेकिन भोजन नहीं। जब उन्होंने पूछा तो ज्ञात हुआ कि उन्होंने जीवन भर दान तो बहुत किया लेकिन कभी अपने पितरों के नाम पर भोजन दान नहीं किया। तब कर्ण ने भगवान यम से प्रार्थना की। परिणामस्वरूप, हर वर्ष एक विशेष समय तय किया गया जब वंशज अपने पितरों के लिए तर्पण और दान करें। यही समय पितृ पक्ष कहलाता है।  
 

ज्योतिष शास्त्र में पितृ पक्ष की भूमिका

ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष का उल्लेख मिलता है। यह दोष तब बनता है जब जन्मकुंडली में सूर्य, चंद्रमा या राहु-केतु की स्थिति ठीक न हो। पितृ दोष से व्यक्ति को पारिवारिक, वैवाहिक या आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने से इस दोष का निवारण माना जाता है।

 इस समय अपने कुल देवता और पितरों की शांति के लिए विशेष पूजा-पाठ और दान करना बेहद शुभ माना जाता है।  
 

पितृ दोष शांति पूजन

पितृ दोष शांति पूजन एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान है, जो आपके पितरों की शांति और आशीर्वाद दिलाने के लिए किया जाता है। यह पूजन न केवल पितृ दोष के नकारात्मक प्रभावों को कम करता है, बल्कि आपके जीवन में स्वास्थ्य, सुख, धन और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी बढ़ाता है। अनुभवी ज्योतिषाचार्य आपकी कुंडली के अनुसार विधिपूर्वक पूजन कराते हैं, ताकि परिणाम अधिक प्रभावशाली हों। यदि आप अपने जीवन में पितरों की कृपा पाना चाहते हैं और बाधाओं को दूर करना चाहते हैं, तो अभी अपनी पितृ दोष शांति पूजन करवा सकते हैं।  
 

पितृ तर्पण और श्राद्ध के नियम

  • तर्पण और पिंडदान – पूर्वजों को जल, तिल, कुश और पिंड अर्पित करना चाहिए।
  • ब्राह्मण भोज – श्राद्ध के दिनों ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना अत्यंत शुभ होता है।
  • सात्त्विक भोजन – इस समय घर में सात्त्विक भोजन बनाना चाहिए। लहसुन, प्याज और मांसाहार से परहेज़ करना होता है ।
  • कुत्ते, गाय और कौवे को भोजन – इन्हें भोजन कराने से पितरों को प्रसन्नता मिलती है।
  • श्राद्ध की तिथि – श्राद्ध हमेशा उसी तिथि को करना चाहिए जिस तिथि को पितृ का देहांत हुआ था।  
     

पितृ पक्ष में क्या करें और क्या न करें?

  • दान-पुण्य करें, गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न-वस्त्र दें।
  • मन को शांत रखकर पूर्वजों की स्मृति में प्रार्थना करें।
  • इस समय शादी, गृह प्रवेश या कोई भी शुभ कार्य करना बाधित होते है उन्हें करने से बचना चाहिए।
  •  वाद-विवाद, क्रोध और अपशब्दों से दूरी रखें।  
     

निष्कर्ष

पितृ पक्ष हमें यह याद दिलाता है कि हमारी जड़ें हमारे पूर्वजों से जुड़ी हैं। उनकी कृपा के बिना जीवन अधूरा है। जब हम श्राद्ध, तर्पण और दान करते हैं, तो यह केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि पितरों के प्रति आभार व्यक्त करने का तरीका है। अगर पितृ पक्ष से जुड़े कोई भी सवाल या शंका आपके मन में हैं, तो आप हमारे ज्योतिषाचार्यों से लाइव चैट करके सही मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।

पितृ पक्ष 2025 में 7 सितंबर से 21 सितंबर तक श्राद्ध और तर्पण अवश्य करें और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करें।

साल 2025 में पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर से होगी और यह 21 सितंबर तक चलेगा। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों के लिए तर्पण और श्राद्ध करते हैं।

पिंड दान पितृ पक्ष की अवधि में किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन अमावस्या तिथि (21 सितंबर 2025) को करना सबसे शुभ और फलदायी माना जाता है।

श्राद्ध या पितृ पक्ष 2025 में 7 सितंबर से शुरू होकर 21 सितंबर को समाप्त होंगे। इस पूरे समय को पूर्वजों के लिए विशेष पूजा और तर्पण का काल माना जाता है।

शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में संबंध बनाने से नकारात्मक ऊर्जा और दोष बढ़ सकते हैं। इस दौरान संयम और पवित्रता बनाए रखना पूर्वजों की कृपा पाने के लिए ज़रूरी है।

Author : Sadhana

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