पितृ पक्ष को कई कारणों से महत्वपूर्ण माना जाता है:
पूर्वजों को कृतज्ञता: यह माना जाता है कि हमारे पूर्वज हम पर अपना आशीर्वाद बनाए रखते हैं, इसलिए उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना हमारा कर्तव्य है। श्राद्ध के माध्यम से हम उन्हें भोजन, जल और तर्पण (तृप्ति) प्रदान करते हैं।
मोक्ष की प्राप्ति: हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि श्राद्ध कर्म करने से हमारे पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
सुख-शांति की प्राप्ति: यह भी माना जाता है कि श्राद्ध करने से हमारे जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है। साथ ही, हमारे पूर्वजों के आशीर्वाद से बाधाएं दूर होती हैं और मन को शांति मिलती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर व्यक्ति की मृत्यु तिथि के अनुसार उसका श्राद्ध किया जाता है। हालांकि, पितृ पक्ष के दौरान प्रत्येक तिथि का एक विशिष्ट महत्व होता है, जैसे:
प्रथम तिथि: सर्वपितृ अमावस्या - इस दिन उन सभी पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है।
चतुर्दशी तिथि: अहोई आठे - इस दिन संतान की सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखा जाता है और पितरों को तर्पण दिया जाता है।
आखिरी तिथि: सर्वपितृ अमावस्या - पितृ पक्ष का समापन भी सर्वपितृ अमावस्या के साथ होता है।
आप अपने माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी इत्यादि के श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान किसी भी दिन कर सकते हैं।
श्राद्ध की विधि-विधान हर क्षेत्र और समुदाय में थोड़ा-बहुत भिन्न हो सकती है। लेकिन, कुछ मुख्य बातें समान होती हैं:
स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें।
पूजा स्थान को साफ करें और सजाएं।
पितरों का श्राद्ध पक्ष की दक्षिण दिशा में कराएं।
आसन बिछाकर उस पर पितरों का चित्र या प्रतिमा रखें।
तैयार भोजन (चावल, दाल, सब्जी आदि) और जल अर्पित करें।
पितरों का नाम लेकर उन्हें मंत्रों का उच्चारण करें।
ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें।
प्रथम श्राद्ध: मृत्यु के बाद पहले वर्ष में किया जाने वाला श्राद्ध विशेष महत्वपूर्ण होता है। इसे "प्रथमवर्ष का श्राद्ध" या "पहला श्राद्ध" भी कहा जाता है। इस दिन विधि-विधान का विशेष रूप से पालन किया जाता है।
माता-पिता का श्राद्ध: माता-पिता का श्राद्ध पूरे पितृ पक्ष के दौरान किसी भी दिन किया जा सकता है। उनकी मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध करना और भी शुभ माना जाता है।
अकाल मृत्यु: दुर्घटना, आत्महत्या या युद्ध में मारे गए व्यक्तियों का श्राद्ध अमावस्या तिथि पर करना चाहिए।
हां, श्राद्ध घर पर भी किया जा सकता है। साफ-सुथरे वातावरण और श्रद्धापूर्वक पूजा करने से भी शुभ फल की प्राप्ति होती है।
भोजन के अलावा, पितरों को जल, तिल, फूल और वस्त्र आदि भी अर्पित किए जाते हैं।
श्राद्ध की विधि को सही ढंग से समझने और पूजा-पाठ करने के लिए आप किसी पंडित की सहायता ले सकते हैं। हालांकि, श्रद्धापूर्वक भोजन और जल अर्पित करना ही सबसे महत्वपूर्ण है।
सात्विक और पौष्टिक भोजन जैसे चावल, दाल, सब्जी, दूध, फल आदि बनाए जा सकते हैं। पितरों की पसंद का भोजन बनाना भी अच्छा माना जाता है।
श्राद्ध का महत्व आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना पहले था। यह परंपरा हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखती है और पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करती है।
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