नवरात्रि के पावन पर्व में आठवें दिन दुर्गा अष्टमी का विशेष महत्व होता है। इस दिन माँ दुर्गा के महाअष्टमी स्वरूप की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन माँ दुर्गा की उपासना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। आइए जानते हैं शारदीय नवरात्रि 2024 में आने वाली दुर्गा अष्टमी के बारे में विस्तार से:
इस वर्ष शारदीय नवरात्रि 29 सितंबर से शुरू होकर 17 अक्टूबर तक चलेगी। दुर्गा अष्टमी बुधवार, 11 अक्टूबर 2024 को मनाई जाएगी। शुभ मुहूर्त के अनुसार, पूजा का समय प्रातः काल 05:18 से प्रारंभ होकर रात्रि 08:29 तक रहेगा।
इस वर्ष दुर्गा अष्टमी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का विशेष संयोग बन रहा है। माना जाता है कि इस योग में किए गए कार्यों में सफलता अवश्य मिलती है। अतः इस पावन दिन पूजा-अर्चना का लाभ कई गुना बढ़ जाता है।
सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
पूजा स्थान को साफ करके गंगाजल छिड़कें।
आसन बिछाकर माँ दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
प्रतिमा को लाल चुनरी से सजाएं और लाल फूल चढ़ाएं।
दीपक जलाएं और अगरबत्ती लगाएं।
चंदन और सिंदूर का तिलक लगाएं।
कलश स्थापित करें और उसमें पंचामृत भरें।
मंत्रों का जाप करते हुए माँ दुर्गा को पुष्प, अक्षत, फल और मिठाई का भोग लगाएं।
"या देवी सर्वभूतेषु माँ शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो हरते।" आदि मंत्रों का जाप करें।
आरती करें और प्रार्थना करें।
पूजा के अंत में प्रसाद ग्रहण करें और दूसरों को बांटें।
दुर्गा अष्टमी के दिन माँ दुर्गा के महाअष्टमी स्वरूप की पूजा की जाती है। इस स्वरूप में माँ दुर्गा आठ भुजाओं से सुशोभित होती हैं और राक्षस महिषासुर का वध करती हैं।
यह दिन शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है। इस दिन माँ दुर्गा की पूजा करने से व्यक्ति में आत्मबल और ऊर्जा का संचार होता है।
दुर्गा अष्टमी के दिन कन्या पूजन का भी विशेष महत्व है। इस दिन नौ कन्याओं का पूजन कर उन्हें भोजन कराया जाता है। माना जाता है कि इससे माँ दुर्गा प्रसन्न होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
दुर्गा अष्टमी का व्रत सूर्योदय से लेकर प्रदोष काल तक रखा जाता है। इस वर्ष प्रदोष काल का समय रात्रि 8:29 तक रहेगा। आप अपनी सुविधा के अनुसार दिन में किसी भी समय पूजा और व्रत का पारण कर सकते हैं।
कन्या पूजन के लिए आप 9 से 11 वर्ष की कन्याओं को आमंत्रित कर सकते हैं। उन्हें लाल चुनरी, बिंदी, फल, मिठाई आदि भेंट कर उनका पूजन करें। साथ ही उन्हें भोजन कराएं और दक्षिणा दें।
कलश एक पवित्र पात्र माना जाता है। सबसे पहले मिट्टी या तांबे का कलश लें और उसे गंगाजल से शुद्ध करें। इसके बाद कलश में गंगाजल, आम के पत्ते, पंचामृत और नारियल रखें। कलश के ऊपर मौली बांधें और पूजा स्थान पर स्थापित करें।
आप अपने पसंद के दुर्गा स्तोत्रों और मंत्रों का जाप कर सकते हैं। इसके अलावा "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं दुर्गायै नमः" या "या देवी सर्वभूतेषु माँ शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो हरते।" जैसे सरल मंत्रों का जाप भी लाभकारी होता है।
इस बारे में अलग-अलग मान्यताएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इस दिन कैंची चलाना या बाल कटवाना शुभ नहीं होता, जबकि कुछ का मानना है कि व्यक्तिगत श्रद्धा के अनुसार पूजा-पाठ करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। निर्णय लेना आपकी व्यक्तिगत आस्था पर निर्भर करता है।
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