खेतों में लहराते सुनहरे गेहूं, खुशनुमा मौसम का आगमन और सृष्टि के नवजीवन का उत्सव - यही है पंजाब का प्रसिद्ध त्योहार बैसाखी। हर साल 13 अप्रैल, चैत्र माह की पहली तारीख को मनाया जाने वाला यह पर्व सिर्फ फसल कटाई का त्योहार नहीं, बल्कि नई उम्मीदों और सकारात्मकता का प्रतीक है।
आइए, इस लेख में हम बैसाखी 2024 के बारे में विस्तार से जानें, जिसमें इसकी तिथि, मुहूर्त, इतिहास, महत्व, उत्सव और परंपराओं के साथ-साथ आपके लिए कुछ खास तैयारियों के बारे में भी बात करेंगे। तो चलिए, बैसाखी के रंग में रंग जाएं!
तिथि: चैत्र माह की पहली तारीख, 13 अप्रैल 2024।
शुभ मुहूर्त: प्रातःकालीन मुहूर्त - प्रातः 5:51 से 7:38 तक।
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:04 से 12:52 तक।
बैसाखी के इतिहास की जड़ें प्राचीन काल में निहित हैं। माना जाता है कि यह त्योहार प्राचीन सौर नववर्ष के रूप में मनाया जाता था, जो सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने के साथ ही शुरू होता है।
इसके अलावा, सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी की गद्दी भी वैसाखी के ही दिन हुई थी, जिस कारण से इस त्योहार का सिख समुदाय के लिए विशेष महत्व है।
बैसाखी का सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक महत्व काफी अधिक है:
किसानों के लिए कृतज्ञता का पर्व: खेतों में लहलहाते फसलों को देखकर किसान फसल कटाई के लिए तैयार होते हैं। बैसाखी उनके परिश्रम और उपज के लिए भगवान का शुक्रिया अदा करने का पर्व है।
नए साल का स्वागत: बैसाखी को पंजाब का नववर्ष माना जाता है। इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं, घरों को साफ-सुथरा करते हैं और नई शुरुआत का संकल्प लेते हैं।
सिख धर्म का पवित्र दिन: सिख समुदाय के लिए बैसाखी गुरु नानक देव जी की गद्दी का पर्व है। इस दिन गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थनाएं और कीर्तन आयोजित किए जाते हैं।
सामुदायिक सद्भाव का प्रतीक: बैसाखी समाज के हर वर्ग के लोगों को एक साथ लाता है। धर्म, जाति और वर्ग के भेद भुलाकर सभी लोग मिलकर इस त्योहार का आनंद लेते हैं।
बैसाखी का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। आइए देखें इसके प्रमुख आकर्षण:
बिहु: बैसाखी के साथ-साथ पंजाब में बिहु का नृत्य उत्सव भी मनाया जाता है। ढोल की थाप पर पुरुष और महिलाएं रंग-बिरंगे वस्त्र पहनकर बिहु का नृत्य करते हैं, जो उत्सव के माहौल को और भी खुशनुमा बनाता है।
गुरुद्वारों में प्रार्थना: सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारों में सुबह के समय विशेष प्रार्थना करते हैं और गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ करते हैं।
पारंपरिक भोजन: बैसाखी के दिन खास पंजाबी व्यंजनों का लुत्फ उठाना एक अलग ही अनुभव होता है। सरसों का साग, मक्के की रोटी, छोले, खीर आदि कुछ ऐसे पकवान हैं, जो इस त्योहार के दौरान जरूर बनते हैं।
भंगड़ा: पंजाब की संस्कृति में भंगड़ा नृत्य का खास स्थान है। बैसाखी के अवसर पर ढोल की थाप पर भंगड़ा करते हुए युवाओं का जोश देखना वाकई दिलचस्प होता है।
पहलवानी का प्रदर्शन: कई जगहों पर बैसाखी के दिन पहलवानी का भी प्रदर्शन किया जाता है, जो लोगों को अपनी शारीरिक शक्ति और कौशल दिखाने का एक मंच प्रदान करता है।
पारंपरिक वस्त्र पहनें: बैसाखी के दिन रंग-बिरंगे, खासकर पीले और हरे रंग के पंजाबी वस्त्र पहनकर त्योहार के माहौल में खुद को शामिल करें।
बिहु में शामिल हों: बिहु नृत्य के उत्सव में भाग लेकर पंजाब की सांस्कृतिक विरासत का अनुभव करें।
गुरुद्वारों में दर्शन करें: चाहे आप सिख धर्म के अनुयायी हों या न हों, बैसाखी के दिन गुरुद्वार में जाकर प्रार्थना करना और खूबसूरत वातावरण का आनंद लेना एक अच्छा अनुभव हो सकता है।
पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद लें: बैसाखी के खास पकवानों का लुत्फ उठाकर पंजाबी संस्कृति को और करीब से जानें।
अपने पंजाबी मित्रों के साथ त्योहार मनाएं: अगर आपके पंजाबी मित्र हैं, तो उनके साथ मिलकर बैसाखी मनाना आपके लिए एक अलग ही अनुभव होगा। उनकी रीति-रिवाजों को देखना और साथ में उत्सव का आनंद लेना यादगार होगा।
बैसाखी सिर्फ फसल कटाई का त्योहार नहीं, बल्कि जीवन में नई उम्मीदों का वाहक है। यह हमें खुशियां मनाने, सकारात्मकता बिखेरने और समुदाय के साथ जुड़ने का अवसर देता है। तो आइए, इस बैसाखी को धूमधाम से मनाएं और रंग-बिरंगे उत्साह के साथ नए साल का स्वागत करें!
क्या बैसाखी के दौरान उपवास रखना होता है?
बैसाखी के दौरान उपवास रखना अनिवार्य नहीं है, लेकिन कुछ लोग सूर्योदय से पूजा समाप्त होने तक उपवास रख सकते हैं।
बैसाखी किस रंग का वस्त्र पहनना चाहिए?
इस दिन पीले, हरे या अन्य रंग-बिरंगे पंजाबी वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।
क्या गर्भवती महिलाएं बैसाखी की पूजा कर सकती हैं?
जी हां, गर्भवती महिलाएं बैसाखी की पूजा कर सकती हैं। हालांकि, उन्हें भारी काम करने से बचना चाहिए और आराम करना चाहिए। पूजा के दौरान वे बैठकर पूजा कर सकती हैं।
बैसाखी के बाद कौन सा त्योहार आता है?
बैसाखी के बाद आने वाला बड़ा त्योहार गणगौर है, जो चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को मनाया जाता है।
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