वास्तु शास्त्र एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है जो मकानों, भवनों और अन्य संरचनाओं के डिजाइन और निर्माण के लिए दिशानिर्देश प्रदान करता है। इसका उद्देश्य सकारात्मक ऊर्जा प्रवाह को बढ़ावा देना और नकारात्मक प्रभावों को कम करना है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में किचन का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वह जगह है जहाँ भोजन तैयार किया जाता है, जो जीवन शक्ति का स्रोत है।
दक्षिण-पूर्व: यह अग्नि कोण है, जो ऊर्जा और उत्साह का प्रतिनिधित्व करता है। यह किचन के लिए सबसे आदर्श स्थान माना जाता है क्योंकि यह भोजन पकाने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है।
पूर्व: यह सूर्य की दिशा है, जो स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक है। पूर्व दिशा में स्थित किचन भी अच्छा माना जाता है, क्योंकि यह सकारात्मक ऊर्जा और अच्छा स्वास्थ्य लाता है।
पश्चिम: यह वायु देवता की दिशा है, जो गति और प्रगति का प्रतिनिधित्व करता है। पश्चिम दिशा में स्थित किचन भी स्वीकार्य है, क्योंकि यह कार्यक्षमता और रचनात्मकता को बढ़ावा देता है।
किचन को मुख्य द्वार से दूर रखा जाना चाहिए।
किचन का सिंक और चूल्हा एक दूसरे के आमने-सामने नहीं होने चाहिए।
किचन में खिड़कियां होनी चाहिए ताकि प्राकृतिक प्रकाश और हवा का प्रवाह हो सके।
किचन को हमेशा साफ और स्वच्छ रखना चाहिए।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में किचन का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। किचन को सही दिशा में रखने से सकारात्मक ऊर्जा प्रवाह को बढ़ावा मिलता है और नकारात्मक प्रभावों को कम किया जाता है। उपरोक्त दिशानिर्देशों का पालन करके, आप अपने घर में एक स्वस्थ और समृद्ध वातावरण बना सकते हैं।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, किचन में माँ अन्नपूर्णा, भगवान अग्निदेव और भगवान हनुमान जी की मूर्ति रखना शुभ माना जाता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, किचन में दर्पण लगाना शुभ नहीं माना जाता है। यदि आप दर्पण लगाना चाहते हैं, तो उसे चूल्हे के सामने नहीं लगाना चाहिए।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, किचन में हल्के रंगों का इस्तेमाल करना चाहिए। सफेद, पीला, नीला और हरा रंग किचन के लिए शुभ माने जाते हैं।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, फ्रिज को किचन के उत्तर-पश्चिम दिशा में रखना चाहिए।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, किचन में खिड़की दक्षिण-पूर्व या पूर्व दिशा में होनी चाहिए।
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Author : Nikita Sharma
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