हिंदू धर्मग्रंथों में समुद्र मंथन की कथा अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह कथा हमें देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष, सहयोग और अमरत्व की खोज के बारे में बताती है। आइए, इस रोमांचक कहानी में गहराई से उतरें और जानें कि आखिर क्यों हुआ था समुद्र मंथन और इससे प्राप्त हुए 14 रत्नों का बंटवारा कैसे हुआ।
समुद्र मंथन की कथा के अनुसार, एक समय महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण स्वर्गलोक अपना सारा वैभव खो बैठा। वहां धन-धान्य, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि सब कुछ नष्ट हो गया। देवताओं की शक्ति क्षीण हो गई और असुरों का बोलबाला बढ़ गया। इस विकट परिस्थिति से निपटने के लिए देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे।
देवताओं की व्यथा सुनकर भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन करने का उपाय सुझाया। उन्होंने बताया कि क्षीर सागर (दूध का समुद्र) का मंथन करने से अमृत नामक दिव्य पेय प्राप्त होगा। इसे पीने से देवता अमर हो जाएंगे और अपनी खोई हुई शक्तियां वापस पा लेंगे।
समुद्र मथन के लिए सबसे पहले मंथन दंड की आवश्यकता थी। इसके लिए भगवान विष्णु ने मंदार पर्वत को उखाड़ लिया। अब सवाल था कि इस विशाल पर्वत को कैसे घुमाया जाए? तब भगवान शिव ने विशाल सर्प वासुकि को लपेटकर मंथन दंड का रूप दिया।
समुद्र मंथन के लिए देवताओं और असुरों में समझौता हुआ। देवता वासुकि के सिर के पास खड़े हुए और असुर उसके पुच्छ (पूंछ) के पास। भगवान विष्णु कच्छप (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र के तल में मंदार पर्वत को स्थिर रखने लगे। इस प्रकार समुद्र मंथन का प्रारंभ हुआ।
हजारों वर्षों तक देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। इस मंथन से अनेक अद्भुत रत्न और दिव्य पदार्थ समुद्र से निकलने लगे। इनमें से कुछ प्रमुख थे:
हलाहल विष: सबसे पहले भयंकर विष हलाहल निकला। यह विष इतना ज़हरीला था कि सारा सृष्टि ही नष्ट हो सकता था। तब भगवान शिव ने इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका गला नीला पड़ गया।
कौस्तुभ मणि: इसके बाद समुद्र से कौस्तुभ मणि प्रकट हुआ। यह अत्यंत चमकीला और दिव्य मणि था, जिसे भगवान विष्णु ने अपने धाम (निवास स्थान) में धारण किया।
कल्पवृक्ष: इसके बाद कल्पवृक्ष निकला, जो मनचाही चीजें प्रदान करने वाला दिव्य वृक्ष था। देवताओं और असुरों के बीच इसको लेकर विवाद हुआ। अंततः यह देवताओं को प्राप्त हुआ।
कामधेनु गाय: इसके बाद कामधेनु गाय प्रकट हुई। यह गाय हर मनोकामना को पूरा करने वाली दिव्य गाय थी। इसे भी देवताओं ने प्राप्त किया।
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समुद्र मंथन से अनेक रत्न निकलने के बाद अंत में सबसे महत्वपूर्ण चीज, अमृत का कलश प्रकट हुआ। अमृत देखकर देवताओं और असुरों में छल-कपट शुरू हो गया। दानवों ने धोखे से देवताओं को अलग कर दिया और स्वयं अमृत का सेवन करने का प्रयास किया।
इस विकट परिस्थिति में भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया। मोहिनी रूप इतना मनमोहक था कि दानव मोहित हो गए। मोहिनी ने असुरों को छलकर उनसे अमृत का कलश ले लिया और फिर देवताओं को अमृत पिलाना शुरू किया।
बारी आई राहु नामक दानव की। वह छल से देवताओं के बीच में बैठ गया और अमृत ग्रहण करने का प्रयास करने लगा। सूर्य और चंद्र देव ने भगवान विष्णु को बता दिया। भगवान विष्णु ने तुरंत ही अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर काट दिया। लेकिन, तब तक राहु अमृत का एक ग्रास ग्रहण कर चुका था। चूंकि राहु का सिर कट चुका था, इसलिए अमृत उसका शरीर में नहीं जा सका। इस वजह से राहु का सिर अमर हो गया और धड़ मृत्यु को प्राप्त हुआ। राहु का सिर बाद में ग्रह बन गया, जिसे हम राहु के नाम से जानते हैं।
कहानी के अनुसार, चंद्रमा ने सूर्य देव को धोखा देने की कोशिश की थी, इसलिए भगवान शिव ने उसे श्राप दिया कि कभी भी उसका पूरा रूप दिखाई नहीं देगा। यही कारण है कि हमें हर महीने चंद्रमा का घटते-बढ़ते रूप दिखाई देता है।
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समुद्र मंथन से कुल 14 रत्न प्राप्त हुए (समुद्र मंथन के 14 रत्न)। इन रत्नों का देवताओं और असुरों के बीच विष्णु भगवान ने निष्पक्ष रूप से बंटवारा किया। देवताओं को अमृत, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, कामधेनु गाय, उर्वशी अप्सरा, वैजयन्ती माला, पारिजात फूल, चंद्रमा और लक्ष्मी प्राप्त हुए। वहीं, असुरों को शंख, नागपाश, खड्ग और वैश्वानर अग्नि प्राप्त हुए। हलाहल विष को भगवान शिव ने ग्रहण कर लिया था।
समुद्र मंथन की कथा हमें कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं देती हैं। यह हमें बताती है कि सहयोग से कठिन से कठिन कार्य भी सफल हो सकते हैं। साथ ही, यह हमें सिखाती है कि लालच और छल हमेशा हानि पहुंचाते हैं। समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्न इस संसार के विभिन्न गुणों और शक्तियों का प्रतीक माने जाते हैं।
कथा के अनुसार, समुद्र मंथन हजारों वर्षों तक चला।
समुद्र मंथन से सबसे पहले भयंकर विष निकला था।
राहु ने छल से देवताओं के बीच बैठकर अमृत का सेवन करने का प्रयास किया। भगवान विष्णु ने तुरंत ही अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर काट दिया, लेकिन तब तक राहु अमृत का एक ग्रास ग्रहण कर चुका था। चूंकि राहु का सिर कट चुका था, इसलिए राहु का सिर अमर हुआ।
दोनों ही दिव्य वस्तुएं मनोवांछित फल देने वाली हैं, लेकिन थोड़ा अंतर है। कल्पवृक्ष एक पेड़ है जो मनचाही चीजें प्रदान करता है, वहीं कामधेनु गाय एक दिव्य गाय है जो दूध, दही, घी आदि के रूप में मनोवांछित चीजें प्रदान करती है।
समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्न इस संसार के विभिन्न गुणों और शक्तियों का प्रतीक माने जाते हैं। उदाहरण के लिए, अमृत अमरत्व का प्रतीक है, कौस्तुभ मणि शक्ति और वैभव का प्रतीक है, कल्पवृक्ष इच्छा पूर्ति का प्रतीक है, और कामधेनु गाय समृद्धि का प्रतीक है
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