भारतीय संस्कृति में व्रत-त्योहारों का खास महत्व है, जो न केवल आध्यात्मिकता को बढ़ाते हैं बल्कि परंपराओं को भी जोड़े रखते हैं। वट पूर्णिमा ऐसा ही एक पावन पर्व है, जो ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस लेख में, हम वट पूर्णिमा व्रत के महत्व, तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में विस्तार से जानेंगे, ताकि आप इस पवित्र दिन को श्रद्धा और भक्ति के साथ मना सकें।
वट पूर्णिमा 21 जून शुक्रवार को मनाई जाएगी। पूर्णिमा तिथि 20 जून रात 10 बजकर 33 मिनट से शुरू होकर 21 जून रात 9 बजकर 23 मिनट तक रहेगी।
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:30 बजे से 5:30 बजे तक
अभिजित मुहूर्त: दोपहर 12:15 बजे से 1:00 बजे तक
वृद्धि मुहूर्त: सुबह 7:30 बजे से 9:00 बजे तक
अवश्यम्भावी मुहूर्त: सुबह 9:00 बजे से 10:30 बजे तक
वट पूर्णिमा का नाम ही हमें बरगद के वृक्ष से जोड़ता है। "वट" का अर्थ ही बरगद होता है, जिसे दीर्घायु और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। इसकी विशाल छाया और लंबी आयु इस व्रत के महत्व को और भी बढ़ा देती है।
विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं वट पूर्णिमा का व्रत करती हैं। इसकी मुख्य वजह पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करना है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लाए थे, जिससे इस व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है।
व्रत का संकल्प: सुबह स्नान करने के बाद पूजा के स्थान पर आसन लगाएं और व्रत का संकल्प लें।
वट वृक्ष की पूजा: बरगद के पेड़ के नीचे गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करें। पेड़ के तने पर रोली-चंदन लगाएं और धूप-दीप जलाएं। जल, दूध, फल आदि अर्पित करें। पेड़ के चारों ओर कच्चा सूत लपेटकर 7 परिक्रमा करें।
सावित्री-सत्यवान कथा: बरगद के नीचे बैठकर सावित्री सत्यवान की कथा का श्रवण करें।
भोजन प्रसाद: व्रत का पारण करने से पहले वट वृक्ष के नीचे ही सात्विक भोजन ग्रहण करें।
व्रत वाले दिन निर्जला या एक समय का भोजन ग्रहण करना चाहिए।
व्रत के दौरान क्रोध, झूठ बोलने और किसी का अनादर करने से बचना चाहिए।
वट पूर्णिमा व्रत सिर्फ परंपरा ही नहीं, बल्कि विज्ञान और आध्यात्म का भी खूबसूरत संगम है। आइए जानें इस व्रत के कुछ अनोखे लाभ:
पर्यावरण संरक्षण: बरगद का वृक्ष वायु को शुद्ध करता है, नमी बढ़ाता है और मिट्टी का कटाव रोकता है। वट पूर्णिमा के दिन इसकी पूजा करने से पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ती है और लोगों को पेड़ों के संरक्षण के लिए प्रेरित किया जाता है।
मानसिक शांति: बरगद के नीचे बैठने से एक खास तरह की सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है। इसकी छाया में पूजा और ध्यान करने से मन शांत होता है और तनाव दूर होता है।
सामाजिक सद्भाव: वट पूर्णिमा के दिन महिलाएं एक साथ पूजा करती हैं और कथा सुनती हैं। इससे आपसी मेलजोल और सामाजिक सद्भाव बढ़ता है।
आत्मविश्वास और संकल्प शक्ति: वट सावित्री की पतिव्रता और दृढ़ संकल्प की कथा सुनने से महिलाओं में आत्मविश्वास और संकल्प शक्ति बढ़ती है। यह उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना करने का हौसला देता है।
स्वास्थ्य लाभ: बरगद के पत्तों और छाल में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। पूजा के दौरान इनका इस्तेमाल करने से कुछ बीमारियों में लाभ मिल सकता है।
व्रत का पारण करने के बाद सभी व्रती एक-दूसरे को वस्त्र, मिठाई आदि देकर आशीर्वाद लेते हैं। इस पूरे दिन को सकारात्मकता और भक्ति के माहौल में व्यतीत करने से आध्यात्मिक अनुभूति होती है और मन को एक अनोखी शांति मिलती है।
हालांकि परंपरागत रूप से सुहागिन महिलाएं ही यह व्रत करती हैं, लेकिन कई स्थानों पर अविवाहित कन्याएं भी व्रत रखती हैं। यह व्रत पति की दीर्घायु के लिए ही नहीं, बल्कि अच्छे जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए भी किया जाता है।
निर्जला व्रत रखने की परंपरा कुछ स्थानों पर है, लेकिन कई लोग एक समय का सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार व्रत को रखना चाहिए।
अगर आपके आसपास बरगद का पेड़ नहीं है, तो किसी भी मंदिर में जाकर वहां पर या घर में ही एक चौकी पर वट वृक्ष का चित्र रखकर पूजा की जा सकती है।
व्रत के पारण के लिए कोई खास नियम नहीं है। अपनी श्रद्धा के अनुसार किसी ब्राह्मण को भोजन या दान देकर या प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण किया जा सकता है।
व्रत वाले दिन मांसाहार, शराब आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। क्रोध, झूठ बोलने और किसी का अनादर करने से भी बचना चाहिए। पूरे दिन सकारात्मक और श्रद्धालु भाव रखना चाहिए।
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