श्रावणी और रक्षाबन्धन | श्री कृष्ण जन्माष्टमी

श्रावणी और रक्षाबन्धन  |  श्री कृष्ण जन्माष्टमी
  • 20 Aug 2024
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श्रावणी पूर्णिमा और रक्षाबन्धन दो महत्वपूर्ण त्योहार हैं जो भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखते हैं। श्रावणी का पर्व आत्मशुद्धि और तर्पण के लिए प्रसिद्ध है, जबकि रक्षाबन्धन भाई-बहन के प्रेम और रक्षा के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इसके साथ ही, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव, देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है, जो असुरों के अत्याचार से मुक्ति और मानवता के उद्धार का प्रतीक है।


श्रावणी और रक्षाबन्धन

श्रावणी पूर्णिमा के दिन दो त्योहार एक साथ मनाए जाते हैं। एक श्रावणी एवं दूसरा रक्षाबन्धन।  श्रावणी का पर्व हमोर लिए विशेष महत्वपूर्ण है। इस दिन शास्त्रोक्त विधि अनुसार प्रारम्भ मै शरीर शुद्ध करने के लिए, दूध, दही, घी, गोबर एवं गौमूत्र आदि से स्नान एवं देवता, पितर, और सप्तर्षि आविर्षों का तर्पण कर्म करना चाहिए 

 

श्रावणी के स्नान से शरीर के माध्यम से 1 वर्ष में हुए अनगिनत पाप ससंकल्प सहित दूर होते हैं। इस कर्म की शास्त्रों में उपाकर्म भी कहा गया है। तत्पश्चात् सन्ध्यावन्दन करने के पश्चात् सप्तर्षि पूजन, यक्षोपवीत - पूजन एवं नवीन यक्षोपवीत धारण करने के पश्चात् गुरु एवं वेदनीय जनो के द्वारा रक्षा सूत्र धारण करना चाहिए। जिसे रक्षाबन्धन श्री कहते है।

 

माना इसे ब्राह्मणों का मुख्य पर्व जाता है I. इस पर्व को ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य आदि भी कर सकते हैं। आजकल बहन हारा भाई के हाथों में राखी बाँधने की प्रथा प्रचलित हैं।

 

श्रावणी और रक्षाबंधन

 

श्री कृष्ण जन्माष्टमी

जन्माष्टमी भारत का प्रमुख पर्व है। पुराण और इतिहास के अनुसार आज से लगभग 5250 वर्ष पूर्व भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन घोर अंधकारमयी अंधकारमयी अर्धरात्रि के समय अत्याचारी कंस के कुशासन की कालिमा कसे लिप्त प्रजाजनी को अपने आलोक से आशा का प्रकाश करते हुए भगवान् श्रीकृष इस भू- मण्डल को कृतार्थ करते हुए इस धरा पर अवतीर्ण हुएः । 

 

उनका इस पृथ्वी में आने का मुख्य कारण असुरों के उत्पीडन से भयभीत प्रजा की रक्षा, दानवता के पंजे में फस्कर कराहती हुई मानवल का उद्धार ही था। उनके प्रकट हौन से जनता जनार्दन के हृदय में छाई हुई इस शुभ दिन के हर्ष एवं उल्लास की स्मृत की स्मरण करते हुए इस दिन की भारतवासी लोग जयन्ती एवं उत्सव के रूप में तभी से मानते आ रहे हैं। 

 

भारत के सभी प्रांतो में इस उत्सव को दिनभर उपवास कर सांयकाल उनके लीलाओं का कथा भजन आदि एवं रात्रि 12:00 बजे महानिशा में जन्मोत्सव की पूजा अर्चना करते हुए श्रद्धामिश्रित उत्साह के साथ मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है।

 

निष्कर्ष:

श्रावणी, रक्षाबन्धन, और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, तीनों त्योहार भारतीय समाज की सांस्कृतिक धरोहर हैं। ये न केवल आध्यात्मिक उन्नति और पारिवारिक संबंधों को मजबूत करते हैं, बल्कि समाज में धर्म, कर्तव्य, और प्रेम के मूल्यों को भी उजागर करते हैं। इन त्योहारों के माध्यम से हम अपनी परंपराओं को संजोते हुए जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति करते हैं।

 

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Author : Nikita Sharma

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