4 युगों की कहानी: युगों का चक्र

4 युगों की कहानी: युगों का चक्र
  • 19 Feb 2024
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चार युगों की कहानी: धर्म कर्म और कलयुग का चक्र

हमारे धर्मग्रंथों में समय को चार युग में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक विशिष्ट विशेषताओं और गुणों से युक्त है। ये चार चार युग सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलयुग हैं। ये युग न केवल समय की गणना करते हैं, बल्कि मानव जाति के आध्यात्मिक और नैतिक विकास के चरणों को भी दर्शाते हैं। आज हम इन 4 युगों की यात्रा पर निकलते हैं और उनकी खासियतों को समझने की कोशिश करते हैं।

 

सतयुग: सत्य और धर्म का स्वर्ण युग

सतयुग को चार युगों में सबसे आदर्श माना जाता है। इस युग में धर्म सर्वोपरि होता था, लोग सत्यनिष्ठ, दयालु और ईश्वरभक्त होते थे। मनुष्य की आयु हजारों वर्षों में होती थी, और भौतिक सुख-समृद्धि भरपूर थी। इस युग में अवतार लेने वाले देवताओं ने भी धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश किया।

 

त्रेतायुग: धर्म में कमी, परंतु सदाचार कायम

त्रेतायुग में धर्म में धीरे-धीरे कमी आने लगी थी, लेकिन सदाचार और नैतिकता का महत्व बना रहा। लोगों की आयु सैकड़ों वर्षों में हो गई, परंतु मनुष्य अभी भी ईमानदार और परोपकारी थे। इस युग में रामायण की कथा घटित हुई, जिसमें भगवान राम ने धर्म की रक्षा के लिए अवतार लिया।

 

4 युग

 

द्वापर युग: धर्म का ह्रास और कलह का आगमन

द्वापर युग में धर्म का और अधिक ह्रास हुआ। लोभ, स्वार्थ और हिंसा बढ़ने लगी। हालांकि, अभी भी अच्छाई मौजूद थी, जैसा कि महाभारत की कथा में पांडवों के चरित्र से स्पष्ट होता है। इस युग में भगवान कृष्ण ने धर्म की पुनर्स्थापना और अधर्मियों का नाश करने के लिए अवतार लिया।

 

कलयुग: कलह और अधर्म का प्रभुत्व

हम वर्तमान में कलयुग में रहते हैं। इसे कलह और अधर्म का युग कहा जाता है। इसमें धर्म का और अधिक ह्रास हुआ है, और अज्ञानता, भ्रम और हिंसा व्याप्त है। लोगों की आयु कम हो गई है, और भौतिक सुखों को ही सर्वोपरि महत्व दिया जाता है। हालांकि, इस युग में भी अच्छाई का प्रकाश बुझा नहीं है, और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए कल्कि अवतार का आगमन माना जाता है।

 

चार युग

 

चार युगों का चक्र और मानव का कर्तव्य

ये चार युग एक चक्रवर्ती क्रम में चलते हैं। सतयुग से शुरू होकर, धर्म धीरे-धीरे कम होता जाता है और कलयुग में पहुंच जाता है। इसके बाद, कलयुग के अंत में धर्म का फिर से उदय होता है और चक्र नए सिरे से शुरू होता है। इस चक्र से हमें ये समझ आता है कि इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा है। हालांकि, मानव का कर्तव्य हर युग में धर्म का पालन करना, सत्य के मार्ग पर चलना और ईश्वरभक्ति में लीन रहना है।

 

निष्कर्ष: चार युग

चार युगों की कहानी हमें इतिहास का दर्शन कराती है, साथ ही हमें अपने वर्तमान और भविष्य के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करती है। कलयुग में रहते हुए भी, हम सतयुग के गुणों को अपनाने का प्रयास कर सकते हैं। सत्यनिष्ठा, दयालुता, ईश्वरभक्ति और धर्म का पालन करके हम स्वयं को ही नहीं, बल्कि समाज को भी बेहतर बना सकते हैं।

 

चार युगों से जुड़े पाठकों के सवाल: 

 

क्या चार युगों की अवधि निश्चित है?

चार युगों की अवधि निश्चित मानी जाती है, लेकिन इनकी गणना के बारे में अलग-अलग मत हैं। कुछ ग्रंथों के अनुसार सतयुग 4800 वर्ष का, त्रेतायुग 3600 वर्ष का, द्वापर युग 2400 वर्ष का और कलयुग 1200 वर्ष का होता है। हालांकि, कई विद्वान इन अवधियों को प्रतीकात्मक मानते हैं।

 

कलयुग कब समाप्त होगा?

कलयुग के अंत के बारे में कई भविष्यवाणियां हैं, लेकिन निश्चित तिथि का पता नहीं है। कुछ मानते हैं कि कलयुग 5120 ईस्वी में समाप्त होगा, जबकि अन्य इसे और बाद में मानते हैं।

 

कलयुग में धर्म का पालन करना कठिन क्यों है?

कलयुग में भौतिक सुखों को अधिक महत्व दिया जाता है, जिससे धर्म का पालन करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। लेकिन यह असंभव नहीं है। कठिन परिश्रम और सतत प्रयास से कलयुग में भी धर्म का मार्ग अपनाया जा सकता है।

 

कलयुग में क्या अच्छा किया जा सकता है?

कलयुग में कई तरह से अच्छाई का प्रसार किया जा सकता है। दयालुता, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और परोपकार का पालन करके हम दूसरों की जिंदगी बेहतर बना सकते हैं। साथ ही, धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन, मंत्र जाप और ईश्वरभक्ति से अपने आध्यात्मिक विकास को भी बढ़ाया जा सकता है।

 

चार युगों की कहानी से हमारा क्या सीखना चाहिए?

चार युगों की कहानी हमें धर्म के महत्व, सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा और कलयुग में भी अच्छाई का प्रसार करने की जिम्मेदारी का बोध कराती है। यह हमें यह भी याद दिलाती है कि इतिहास चक्रवर्ती है, और सतयुग की वापसी का सपना हमारे प्रयासों से ही पूरा हो सकता है।

 

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