हिंदू धर्म में सीता नवमी का पावन पर्व भगवान राम की पत्नी सीता माता के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस वर्ष, सीता नवमी 2024 16 मई, मंगलवार को मनाई जाएगी। यह पर्व न केवल सीता माता के प्रति श्रद्धा अर्पित करने का अवसर है, बल्कि उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को पवित्रता, त्याग और संबल की भावना से जीने का संकल्प लेने का दिन भी है।
सीता नवमी की तिथि हर साल थोड़ा-बहुत बदलती रहती है। 2024 में, यह पर्व मंगलवार, 16 मई को सूर्योदय से पहले 02:17 AM से प्रारंभ होकर अगले दिन, 17 मई को सुबह 02:02 AM तक मान्य रहेगी।
इस दिन चंद्रमा धनु राशि में होगा, जो सीता माता के जीवन से जुड़ा माना जाता है। हालांकि, पूरे दिन अबूझ मुहूर्त होने के कारण किसी भी शुभ कार्य के लिए पंडितजी से मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन कुछ खास मुहूर्त भी उपलब्ध हैं, जिन्हें आप विशेष अनुष्ठानों के लिए चुन सकते हैं, जैसे:
प्रातः स्नान मुहूर्त: 05:40 AM से 06:27 AM
पूजा-अर्चना मुहूर्त: 10:15 AM से 11:49 AM
पारिवारिक अनुष्ठान मुहूर्त: 03:42 PM से 05:16 PM
सीता नवमी का धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व है। सीता माता को आदर्श पत्नी, समर्पित पतिव्रता और त्यागमूर्ति माना जाता है। उनके जीवन से हमें भक्ति, पतिव्रता धर्म, संतोष, धैर्य और कठिन परिस्थितियों में दृढ़ता का पाठ मिलता है। इस दिन घर-मंदिरों और मठों में भव्य पूजा-अर्चना होती है। सीता माता के जीवन से जुड़े भजन-कीर्तन गाए जाते हैं। लोग उपवास रखते हैं और दान-पुण्य करते हैं।
सीता नवमी मनाने की परंपराएं देश के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न हैं। आइए कुछ खास प्रथाओं की सैर करें:
उत्तर भारत: अयोध्या, जनकपुर और मिथिला में भव्य रथयात्रा आयोजित की जाती है। महिलाएं विशेष पूजा करती हैं और सीता माता के गीत गाती हैं।
दक्षिण भारत: दक्षिण में तमिलनाडु और केरल में सीता कल्याणम का अनुष्ठान किया जाता है, जिसमें भगवान राम और सीता माता के विवाह का पुनर्निर्माण किया जाता है।
पूर्वी भारत: ओडिशा में सीता नवमी को "सितुआ उत्सव" के रूप में मनाया जाता है। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
सीता नवमी के दिन आप घर पर ही सरल पूजा-अर्चना कर सकते हैं। आइए देखें कैसे:
प्रातः स्नान के बाद साफ-सुथरे वस्त्र पहनें। पूजा स्थान की सफाई करें।
एक चौकी पर गंगाजल छिड़ककर गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद सीता माता और भगवान राम की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
दीप जलाएं, फूल, फल और पंचामृत अर्पित करें।
घी का दीपक जलाएं, धूपबत्ती जलाएं और मंत्रों का जाप करें। आप "ॐ जय श्री सीतायै नमः" या "श्री राम जय जय राम, जय जय हनुमान, सीता राम चंद्र की जय" मंत्र का जाप कर सकते हैं।
सीता माता से अपने जीवन में पवित्रता, त्याग और संबल का आशीर्वाद लें। अपने मन की इच्छाओं को प्रकट करें और उनसे अपने जीवन में सुख-शांति लाने की प्रार्थना करें।
आप सीता माता के जीवन से जुड़ी कथाओं का पाठ भी कर सकते हैं। जैसे सीता स्वयंवर, वनवास, लंका युद्ध और राम-सीता का मिलन आदि।
पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करें और परिवार के साथ भोजन करें। जरूरतमंदों को भोजन दान करना शुभ माना जाता है।
सीता नवमी पर, हम सीता माता के जीवन के महत्वपूर्ण संदेशों को याद करते हैं। इस अवसर पर, हम पवित्रता, त्याग, और संबल के मूल्यों को समझते हैं और उन्हें अपने जीवन में अमल में लाने का संकल्प करते हैं। इस दिन, हम सीता माता की पूजा करते हैं और उनके आशीर्वाद का लाभ लेते हैं, ताकि हम उनके मार्गदर्शन में अपने जीवन को सफल बना सकें।
जी , 2024 में सीता नवमी के दिन दोपहर 12:18 बजे तक गुरुमहिम योग बन रहा है, जो ज्ञान, विद्या और आत्मिक उन्नति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इसका लाभ उठाकर पूजा-पाठ, ध्यान या मंत्र जाप करना विशेष फलदायी हो सकता है।
उपवास करना पूरी तरह से वैकल्पिक है। हालांकि, कुछ लोग सूर्योदय से सूर्यास्त तक उपवास रखते हैं और केवल फल और दूध आदि ग्रहण करते हैं। यदि आप उपवास रखते हैं, तो अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें और ज्यादा कमजोरी महसूस होने पर उपवास तोड़ने में संकोच न करें। सीता नवमी के दिन सात्विक भोजन का प्रचलन है। मांस, मछली, शराब आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
आप अपने घर को रंगोली, फूलों, मालाओं आदि से सजा सकते हैं। घर द्वार पर आम के पत्तों का तोरण लगाना शुभ माना जाता है। आप सीता माता और भगवान राम की तस्वीर या मूर्ति को भी घर में स्थापित कर सकते हैं। घर का वातावरण शांत और सकारात्मक रखें।
दान-पुण्य सीता नवमी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जरूरतमंद लोगों को भोजन, वस्त्र, दवाई या धन आदि का दान कर सकते हैं। आप किसी एनजीओ के माध्यम से भी गरीबों की सहायता कर सकते हैं।
सीता माता वनदेवी लक्ष्मी का ही रूप हैं, इसलिए उनका पर्यावरण से गहरा संबंध है। इस पर्व पर हमें पर्यावरण की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए। पौधरोपण करें, जल संरक्षण के उपाय करें और प्रदूषण फैलाने से बचें। यह त्योहार प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उसकी रक्षा का अवसर प्रदान करता है।
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