गंगा सप्तमी का पवित्र उत्सव

गंगा सप्तमी का पवित्र उत्सव
  • 14 Feb 2024
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गंगा सप्तमी का पवित्र उत्सव: धर्म, पर्यावरण और आध्यात्म का संगम 

हिंदू संस्कृति में, शुभ नदियों को देवताओं का वास माना जाता है, और उनमें से गंगा नदी का स्थान सर्वोपरि है। वो जीवनदायिनी, मोक्षदायिनी और पापहरणी मानी जाती है, जिसके पवित्र जल में स्नान करके भक्त पाप धोते हैं और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध होते हैं। गंगा नदी से जुड़े अनेक त्योहार और पर्व मनाए जाते हैं, जिनमें से गंगा सप्तमी का विशेष महत्व है।

 

गंगा सप्तमी: पवित्रता का अवतरण (तिथि और मुहूर्त)

इस वर्ष, गंगा सप्तमी 2024 14 मई को मनाई जाएगी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन गंगा माता स्वर्ग से अवतरित होकर पृथ्वी पर आई थीं, इसलिए इस दिन को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। आइए जानें 2024 की गंगा सप्तमी की तिथि और शुभ मुहूर्त:

 

गंगा सप्तमी की तिथि: 

14 मई 2024, सुबह 05:40 बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन, 15 मई 2024 को सुबह 05:33 बजे तक मान्य।

 

गंगा सप्तमी 2024 का मुहूर्त:

पूरे दिन अबूझ मुहूर्त होता है, यानी किसी भी शुभ कार्य के लिए पंडितजी से शुभ मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, कुछ खास मुहूर्त भी उपलब्ध हैं, जैसे:

 

  • प्रातः स्नान मुहूर्त: 05:40 AM से 06:27 AM

  • पूजा-अर्चना मुहूर्त: 10:15 AM से 11:49 AM

  • पारिवारिक अनुष्ठान मुहूर्त: 03:42 PM से 05:16 PM

 

गंगा सप्तमी का अनुष्ठान और परंपराएं

गंगा सप्तमी पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस दिन गंगा का जल और भी पवित्र और शुभ होता है, जो पापों को धोकर सौभाग्य का मार्ग प्रशस्त करता है। यदि गंगा नदी के तट पर जाना संभव न हो, तो पवित्र जल में गंगाजल मिलाकर घर पर भी स्नान किया जा सकता है।

 

स्नान के बाद, भगवान विष्णु और माता गंगा की पूजा-अर्चना की जाती है। उन्हें फूल, फल, चंदन, तुलसी आदि अर्पित किए जाते हैं और आरती उतारी जाती है। भक्त गायत्री मंत्र या गंगा स्तुति का पाठ भी करते हैं। कुछ लोग इस दिन उपवास भी रखते हैं।

 

गंगा सप्तमी पर दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है। गरीबों की सहायता करना, उन्हें भोजन, वस्त्र आदि का दान करना पुण्य फलदायी माना जाता है। दान से जीवन में सुख-शांति आती है और पुण्य कमाया जाता है।

 

गंगा सप्तमी का महत्व: आध्यात्म और पर्यावरण का संगम

गंगा सप्तमी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व तो निर्विवाद है, लेकिन इसका पर्यावरणीय महत्व भी उतना ही महत्वपूर्ण है। गंगा भारत की जीवनदायिनी नदी है, जो करोड़ों लोगों को पानी प्रदान करती है। गंगा सप्तमी हमें नदी के प्रति हमारी जिम्मेदारी याद दिलाती है और नदी के संरक्षण के लिए प्रेरित करती है।

 

पर्यावरण को बचाने के लिए हमें नदी में कचरा नहीं फेंकना चाहिए, नदी किनारे का दोहन नहीं करना चाहिए और जल संरक्षण के उपाय करने चाहिए। गंगा सप्तमी के दिन नदी की स्वच्छता का संकल्प लेना और उसे जीवन में अपनाना ही असली पूजा है।

 

गंगा सप्तमी की विविधता: क्षेत्रीय परंपराएं और अनोखे अनुष्ठान

गंगा सप्तमी केवल पूजा-पाठ और गंगा स्नान तक ही सीमित नहीं है। भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में इस त्योहार को मनाने की विविध परंपराएं और अनोखे अनुष्ठान देखने को मिलते हैं। आइए कुछ दिलचस्प परंपराओं की सैर करें:

 

  • उत्तराखंड: हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे गंगा तटों पर भव्य मेले लगते हैं। भक्त गंगा आरती में भाग लेते हैं और दीपदान करते हैं। कुछ लोग गंगा की धारा में मिट्टी के दीप प्रवाहित करते हैं, जो एक अलौकिक दृश्य प्रस्तुत करता है।

 

  • बिहार: यहां गंगा सप्तमी को "सातन" के नाम से जाना जाता है। महिलाएं सात अलग-अलग प्रकार के अनाजों से बने पकवान बनाती हैं और गंगा माता को भोग लगाती हैं। लोक नृत्य और गीत-संगीत इस पर्व का प्रमुख आकर्षण होता है।

 

  • पश्चिम बंगाल: इस क्षेत्र में गंगा सप्तमी के दिन गंगासागर नामक पवित्र स्थान पर बड़ा मेला लगता है। हजारों श्रद्धालु यहां गंगा में स्नान करते हैं और सूर्य की पूजा करते हैं। सागर तट पर स्नान करना विशेष शुभ माना जाता है।

 

गंगा सप्तमी

 

  • तमिलनाडु: दक्षिण में, गंगा सप्तमी को "गैंगै पंडी" के नाम से मनाया जाता है। चेन्नई के पास त्रिवेंद्रम नामक स्थान पर बड़ा उत्सव होता है। भक्त मंदिर में नंदी बैल की पूजा करते हैं और मान्यता है कि इससे मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

 

  • केरल: केरल में भी गंगा सप्तमी का खास महत्व है। कई मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और नदी किनारे गौ पूजा का आयोजन किया जाता है। गाय को पवित्र माना जाता है और उनकी सेवा करना शुभ माना जाता है।

 

ये मात्र कुछ उदाहरण हैं, भारत के विभिन्न हिस्सों में गंगा सप्तमी को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। हर परंपरा अपने अनोखे अनुष्ठानों और मान्यताओं के साथ इस पर्व को खास बनाती है।

 

निष्कर्ष: गंगा सप्तमी - स्वर्ग का स्पर्श पृथ्वी पर

गंगा सप्तमी, एक पावन त्योहार, धर्म, पर्यावरण, और आध्यात्म को सुंदरता से जोड़ता है। यह दिन हमें अपनी जड़ों से जुड़ने, प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने, और आध्यात्मिक शुद्धि का मार्ग प्रशस्त करने का अवसर प्रदान करता है। गंगा की पवित्रता को बनाए रखने के लिए हमें जागरूक रहना चाहिए और नदी के प्राकृतिक सौंदर्य का समर्पण करना चाहिए। इस सप्तमी पर, हमें गंगा नदी की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए, प्रकृति से सद्भाव में रहना चाहिए, और अपने जीवन को सत्यनिष्ठा और पवित्रता से भरने का आशीर्वाद लेना चाहिए। यही है सच्ची पूजा, यही उत्सव का सार है।

 

गंगा सप्तमी से जुड़े प्रश्न

 

क्या घर पर गंगा स्नान करने का फल मिलता है?

जी हां, यदि गंगा नदी तक जाना संभव न हो, तो आप साफ जल में गंगाजल मिलाकर घर पर भी गंगा स्नान कर सकते हैं। ध्यान रखें कि स्नान से पहले घर की अच्छी तरह से सफाई कर लें और अपने मन को पवित्र रखें।

 

गंगा सप्तमी पर किन मंत्रों का जाप करना चाहिए?

आप गायत्री मंत्र, श्रीविष्णु स्त्रोत, गंगा स्तुति आदि मंत्रों का जाप कर सकते हैं। आप अपने आराध्य देवता के मंत्र का भी जाप कर सकते हैं।

 

क्या गंगा सप्तमी पर कुछ खास भोजन बनाए जाते हैं?

कुछ क्षेत्रों में, गंगा सप्तमी पर सात्विक भोजन का प्रचलन है। शाकाहारी व्यंजनों, जैसे खीर, हलवा, फल आदि को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है।

 

गंगा सप्तमी का पर्यावरण से क्या संबंध है?

गंगा हमारे पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस त्योहार का उद्देश्य नदी की पवित्रता और महत्व को समझना है। हमें नदी को स्वच्छ रखने का संकल्प लेना चाहिए और नदी किनारे प्रदूषण नहीं फैलाना चाहिए।

 

क्या गंगा सप्तमी पर कोई विशेष योग बन रहा है?

2024 में गंगा सप्तमी के दिन दोपहर 03:18 बजे तक ब्रह्म योग बन रहा है, जो किसी भी शुभ कार्य के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इसका लाभ उठाकर पूजा-पाठ, अनुष्ठान या दान-पुण्य करना विशेष फलदायी हो सकता है।

 

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