भारतीय संस्कृति में त्योहारों का खास स्थान है, जो न केवल सांस्कृतिक विरासत को जोड़े रखते हैं बल्कि अनोखी परंपराओं के माध्यम से जीवन के अनमोल पाठ भी सिखाते हैं। ऐसा ही एक अनोखा त्योहार है बासौड़ा, जहां ताजा पका हुआ भोजन त्याग कर बासी भोजन ग्रहण करना परंपरा का हिस्सा है। 2024 में बासौड़ा 29 मार्च को मनाया जाएगा। आइए, इस लेख में बासौड़ा के उत्सव, धार्मिक महत्व और इसकी अनूठी परंपरा के बारे में विस्तार से जानें।
बासौड़ा का सबसे अलग और महत्वपूर्ण रिवाज है, इस दिन ताजा पका हुआ भोजन नहीं बनाया जाता और पिछले दिन के बचे हुए बासी भोजन को ही ग्रहण किया जाता है। "बसौड़ा" शब्द ही "बासी भोजन" को दर्शाता है, इसलिए इसे शीतला सप्तमी बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है।
बासी भोजन ग्रहण करने की परंपरा के पीछे कई धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं जुड़ी हैं। एक मान्यता के अनुसार, माता शीतला को बासी भोजन प्रिय है, इसलिए उनके सम्मान में इस दिन केवल बासी भोजन ग्रहण किया जाता है।
दूसरी मान्यता के अनुसार, बासौड़ा के दिन पृथ्वी पर ज्वार-भाटा अधिक उफान पर होता है, जिससे अग्नि प्रज्वलित करना कठिन हो जाता है। इसलिए, पिछले दिन का भोजन ग्रहण कर अग्नि का उपयोग कम करने की परंपरा चली आई।
सामाजिक दृष्टिकोण से भी बासौड़ा का महत्व है। इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन दान देने की परंपरा होती है। चूंकि भोजन पहले से ही तैयार होता है, इसे आसानी से वितरित किया जा सकता है और कोई भी जरूरतमंद भोजन के अभाव में नहीं रहता।
बासौड़ा मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में मनाया जाता है। इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और घर की साफ-सफाई करते हैं। मंदिरों में माता शीतला की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें उन्हें फल, फूल और बासी भोजन का भोग लगाया जाता है।
कुछ क्षेत्रों में बासौड़ा के दिन "बेल का शरबत" बनाने की भी परंपरा है। यह शीतल पेय पदार्थ माता शीतला को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है और लोगों में भी वितरित किया जाता है।
दिनभर भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है और शाम को लोग परिवार के साथ मिलकर बासी भोजन का ही ग्रहण करते हैं।
यहां पढ़ें: बासौड़ा 2024 अंग्रेजी में
जैसा कि पहले बताया गया है, माता शीतला को बासी भोजन प्रिय है। माना जाता है कि जो लोग बासौड़ा के दिन सच्चे मन से उनकी पूजा करते हैं और बासी भोजन ग्रहण करते हैं, उन्हें रोगों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने पृथ्वी पर बढ़ते तापमान को कम करने के लिए शीतल धारा प्रवाहित की थी। इस जल का स्पर्श भोजन के सभी अवशेषों को साफ कर देता था, यही कारण है कि बासौड़ा के दिन बासी भोजन ग्रहण करना शुभ माना जाता है।
कुछ मान्यताओं के अनुसार, बासौड़ा के दिन अग्नि का उपयोग कम करने से नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से बचा जा सकता है।
माता शीतला की पूजा-अर्चना करने के लिए तुलसी, फूल, फल और पिछले दिन के पके हुए चावल का प्रसाद चढ़ाएं।
इस दिन घर में झाड़ू लगाकर और दरवाजे पर नींबू-मिर्च लगाकर नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने की परंपरा है।
बासौड़ा का भोजन ग्रहण करने से पहले भगवान का ध्यान जरूर करें और भोजन को प्रसाद समझकर ग्रहण करें।
बचे हुए भोजन को फेंकने के बजाय गाय या अन्य पशुओं को खिलाएं।
बासौड़ा एक ऐसा त्योहार है जो न केवल अनोखी परंपराओं के जरिए जीवन के अनमोल पाठ सिखाता है बल्कि धार्मिक आस्था, सामाजिक समरसता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है। आइए, इस वर्ष बासौड़ा को धूमधाम से मनाएं और इसकी अनूठी परंपराओं का पालन कर जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करें।
1. क्या बासौड़ा के दिन अन्य कोई भोजन ग्रहण करना मना है?
जी नहीं, बासौड़ा के दिन केवल बासी भोजन ग्रहण करने की परंपरा है, लेकिन आप फलाहार जैसे फल, दूध या सूखे मेवे का भी सेवन कर सकते हैं।
2. क्या हर साल बासौड़ा उसी तिथि पर मनाया जाता है?
बासौड़ा की तिथि हिंदू कैलेंडर के अनुसार बदलती रहती है। यह आमतौर पर चैत्र महीने की कृष्ण पक्ष की सप्तमी को मनाया जाता है।
3. क्या बासौड़ा का व्रत रखना अनिवार्य है?
बासौड़ा का व्रत रखना अनिवार्य नहीं है, लेकिन कई श्रद्धालु इस दिन व्रत रखते हैं और केवल फलाहार ग्रहण करते हैं।
4. क्या बासौड़ा के दिन घर से बाहर निकलना मना है?
जी नहीं, बासौड़ा के दिन घर से बाहर निकलने पर कोई पाबंदी नहीं है। आप पूजा-पाठ करने के बाद अपने दैनिक कार्यों को पूरा कर सकते हैं।
5. बासौड़ा के दौरान किन सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए?
बासौड़ा के दौरान बासी भोजन को गर्म करते समय स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। भोजन को खराब होने से बचाएं और केवल वही मात्रा भोजन गर्म करें जिसे आप ग्रहण कर सकें।
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