राधा अष्टमी हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष यह तिथि 11 सितंबर 2024 को पड़ रही है। राधा जी को सर्वोच्च प्रेम की मूर्ति माना जाता है। उनका असीम और निस्वार्थ प्रेम भक्तों को जीवन में सच्चे प्रेम का पाठ पढ़ाता है। उनकी भक्ति वात्सल्य और त्याग से भरी है, जो भक्तों को मोक्ष प्राप्ति की राह दिखाती है। राधा अष्टमी के दिन उनकी पूजा अर्चना करने से प्रेम, सौभाग्य और आनंद की प्राप्ति होती है।
राधा अष्टमी के दिन सुबह स्नानादि करके साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। एक चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाकर राधाजी और कृष्ण जी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। उन्हें धूप, दीप, अगरबत्ती और पुष्प अर्पित करें। दूध, पंचामृत, फल और मिठाई का भोग लगाएं। राधा कृष्ण मंत्रों का जाप करें और उनकी स्तुति गाएं। राधाजी को प्रिय गीत और भजन गाएं। कथा सुनें और आरती उतारें।
इस वर्ष राधा अष्टमी तिथि प्रारंभ: 11 सितंबर 2024, दोपहर 01 बजकर 35 मिनट
मध्यान्ह पूजा का समय: 12 सितंबर 2024, सुबह 10 बजकर 21 मिनट से दोपहर 12 बजकर 40 मिनट तक
कई भक्त राधा अष्टमी के दिन व्रत भी रखते हैं। व्रत का संकल्प सुबह सूर्योदय से पहले लिया जाता है। इस दिन सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है। शाम को राधा जी और कृष्ण जी की आरती के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है।
राधा जी के जन्म को लेकर पुराणों में अलग-अलग कथाएं वर्णित हैं। एक कथा के अनुसार, राधा जी ब्रह्मा जी के कमंडल से उत्पन्न हुई थीं, उन्हें दिव्य शक्तियों से युक्त देखकर वृषभानु और माया नामक दंपत्ति ने गोद ले लिया था। दूसरी कथा के अनुसार, विष्णु के अंश से राधा जी की उत्पत्ति हुई और कृष्ण के अंश से कृष्ण जी का अवतार हुआ। हर कथा राधा और कृष्ण के अटूट प्रेम और दिव्य संबंध को दर्शाती है।
राधा जी की पूजा के दौरान विभिन्न मंत्रों का जाप किया जाता है। कुछ प्रमुख मंत्र इस प्रकार हैं:
ॐ राधा कृष्णाय नमः
या देवी सर्वभूतेषु राधा रूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
कृष्णाय गोविंदाय गोपीपति देवाय नमः ॥
राधा अष्टमी से जुड़ी कई लोकप्रिय मान्यताएं और परंपराएं हैं:
पंजीरी का भोग: राधा जी को पंजीरी का भोग बहुत प्रिय माना जाता है। इसे सूखे मेवों, गुड़ और गेहूं से बनाया जाता है और यह मिठास के साथ ही पोषण भी प्रदान करता है।
झूला झूलना: राधा जी को झूला झूलना काफी पसंद था। इसलिए मंदिरों और घरों में इस दिन राधा-कृष्ण की झूला सजाया जाता है, जिसे श्रद्धालु छूकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
मयूर नृत्य: राधा जी को हरे रंग का बहुत शौक था और मयूर उनका प्रिय पक्षी था। इसलिए कई जगहों पर इस दिन मयूर नृत्य का आयोजन किया जाता है।
ब्रह्मचर्य व्रत: कुछ लोग राधा अष्टमी के दिन ब्रह्मचर्य व्रत रखते हैं और मन को शुद्ध रखने का प्रयास करते हैं।
दान-दक्षिणा: इस दिन जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा देना शुभ माना जाता है।
राधा अष्टमी सिर्फ धार्मिक पर्व ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। इस दिन जगह-जगह भजन कीर्तन, नाट्य मंडली द्वारा राधा-कृष्ण की लीलाओं का मंचन और राधा-कृष्ण की वेशभूषा में झांकियां निकाली जाती हैं। ये आयोजन भक्ति भाव को जगाने के साथ ही लोगों में सांस्कृतिक एकता बढ़ाते हैं।
राधा अष्टमी का पर्व हमें प्रेम, भक्ति, त्याग और समर्पण का पाठ पढ़ाता है। यह प्रेम को जीवन का आधार बनाकर एक आदर्श समाज बनाने की प्रेरणा देता है। इस पावन अवसर पर राधाजी की कृपा पाने के लिए उनकी पूजा-अर्चना करें, मंत्रों का जाप करें और उनके बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लें।
राधा जी के जन्म की तिथि को लेकर मतभेद हैं, लेकिन भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को अधिकांश स्थानों पर उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है।
अन्य धर्मों में भी राधा जी को श्रद्धा से याद किया जाता है, लेकिन राधा अष्टमी का प्रमुख उत्सव हिंदू धर्म में ही होता है।
बिल्कुल! घर पर भी राधा जी की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करके पूजा-अर्चना की जा सकती है। मंत्रों का जाप और भजन गाकर आध्यात्मिक वातावरण बनाया जा सकता है।
नहीं, इस दिन सात्विक भोजन ग्रहण करने की ही सलाह दी जाती है। अपनी पसंद के सात्विक व्यंजन बनाकर भोग लगाया जा सकता है।
यह पर्व प्रेम, भक्ति और सकारात्मकता का संचार करता है। राधा जी की पूजा से मन की शांति, जीवन में सफलता और आनंद की प्राप्ति होती है।
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