पार्श्व एकादशी तिथि प्रारंभ: 13 सितंबर 2024, शाम 06 बजकर 29 मिनट
पार्श्व एकादशी तिथि समाप्त: 14 सितंबर 2024, दोपहर 03 बजकर 16 मिनट
व्रत पारण का समय: 15 सितंबर 2024, सुबह 06 बजकर 11 मिनट से दोपहर 08 बजकर 41 मिनट तक
पार्श्व एकादशी को भाद्रपद शुक्ल एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के परमधाम वैकुंठ धाम के द्वार खुलते हैं। माना जाता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा-अर्चना और व्रत करने से पापों का नाश होता है, मोक्ष की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ ही उनके शेषनाग स्वरूप की भी पूजा की जाती है।
सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करके साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।
पूजा स्थान को साफ करके गंगाजल छिड़कें।
एक चौकी पर पीला या सफेद कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु और शेषनाग की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
उन्हें धूप, दीप, अगरबत्ती और पुष्प अर्पित करें।
पंचामृत, फल और मिठाई का भोग लगाएं।
"ॐ विष्णुरे नमः" या "ॐ नमो भगवते परशुरामाय" मंत्र का जाप करें।
विष्णु चालीसा और शेषनाग स्तोत्र का पाठ करें।
कथा सुनें और आरती उतारें।
जरूरतमंदों को दान दें।
कई भक्त पार्श्व एकादशी के दिन व्रत भी रखते हैं।
व्रत का संकल्प सुबह सूर्योदय से पहले लिया जाता है।
इस दिन सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है, जैसे फल, दूध, दही, मेवे आदि।
शाम को भगवान विष्णु की आरती के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है।
पार्श्व एकादशी के दौरान विभिन्न मंत्रों का जाप किया जाता है, जिनमें से कुछ प्रमुख मंत्र हैं:
ॐ विष्णुरे नमः
ॐ नमो भगवते परशुरामāya
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
पार्श्व एकादशी से जुड़ी कई लोकप्रिय मान्यताएं और परंपराएं हैं:
शेषनाग पूजा: कुछ क्षेत्रों में पार्श्व एकादशी के दिन विशेष रूप से शेषनाग की पूजा की जाती है। उन्हें दूध से अभिषेक किया जाता है और नागफनी अर्पित की जाती हैं।
तुलसी पूजा: इस दिन तुलसी पूजा का भी विशेष महत्व है। माना जाता है कि तुलसी की पूजा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
जागरण: कुछ लोग रात भर जागकर भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करते हैं। यह आध्यात्मिक जागरण का एक खास तरीका माना जाता है।
पवित्र नदियों में स्नान: इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का भी विधान है। ऐसा माना जाता है कि इससे पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
पार्श्व एकादशी का पर्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि सामाजिक और पारिवारिक महत्व भी रखता है। इस दिन लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं और मिल-जुलकर भजन-कीर्तन करते हैं। इससे सामाजिक सद्भावना और पारिवारिक बंधन मजबूत होते हैं।
2024 पार्श्व एकादशी का पर्व हमें कर्तव्यनिष्ठा, ईश्वर भक्ति और आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाता है। यह हमें सत्कर्म करने और दूसरों की भलाई करने की प्रेरणा देता है। आइए, इस पवन पर्व को पूरे श्रद्धा-भाव से मनाएं और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करें।
इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा आदि का सेवन वर्जित माना जाता है। सात्विक भोजन करने की सलाह दी जाती है।
गर्भवती महिलाओं और बीमार व्यक्तियों को अपनी शारीरिक स्थिति के अनुसार ही व्रत रखना चाहिए। डॉक्टर की सलाह लेना उचित होता है।
सुबह सूर्योदय के बाद स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। भगवान विष्णु की पूजा करें और फिर सात्विक भोजन ग्रहण करें। दान-दक्षिणा देकर व्रत का समापन करें।
हर महीने आने वाली सभी एकादशियों का महत्व है। अपनी इच्छा और क्षमता के अनुसार किसी भी एकादशी का व्रत रखा जा सकता है।
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